जीवन साधन से नहीं साधना से परिपूर्ण होगा |
आज संसार का प्रत्येक व्यक्ति कुछ ना कुछ पाने की इच्छा में प्रयत्न कर रहा है जो की सभी को करना भी चाहिए| लेकिन जब व्यक्ति एक के बाद एक साधन इकट्ठे करने लग जाता है तो वह साधनों से परिपूर्ण तो हो जाता है लेकिन वह बहुत कुछ गंवा चुका होता है| उसे पता ही नहीं चलता कि जिन साधनों का अत्यधिक प्रयोग कर रहा है यही उसे सुख के वजह दुख दे रहे हैं अर्थात उसका सुखचैन सभी छीन लेते हैं |
जैसे :- कोई व्यक्ति सुबह से शाम तक गाड़ी में हीं घूमता है और उसे धरती पर चलने का समय ही नहीं मिल पाता है तो इस हालत में अब उसके पैर ही कार्य करना बंद कर देंगे| अगर हम मोबाइल का अत्यधिक प्रयोग करते हैं तो हम अपनी आंखों, श्रवणशक्ति तथा हृदयघात जैसी बीमारियों से युक्त हो जाएंगे|
जबकि होना यह चाहिए था जो भौतिक साधन हमने अपने सुख के लिए बनाए थे अब हम इसका कितना ही प्रयोग करें इससे फर्क नहीं पडना चाहिए था |
परंतु ऐसा नहीं हुआ ये भौतिक साधन ही हमारे जीवन को ही निगलने लगे और हमें पता भी नहीं चला|
इसलिए महाराज भर्तहरि महाराज ने कहा है –
भोगो न भुक्ता वयमेव भुक्ता |
भोगों को हमने नहीं भोगा बल्कि भोगो न हीं हमें भोग लिया है |
यदि हम नहीं संभले तो यह आदतें ही हमारे जीवन को निगलने वाली बन जाएगी |
अतः प्रत्येक प्राणी को चाहिए कि वह इन साधनों का प्रयोग केवल विशेष जरूरत में हीं करें | ना कि सारे दिन फिजूल खर्च में बिताये | अगर साधनों का प्रयोग साधना की तरह किया जाए तो यह हमें उन्नति के साथ सुख देने वाले होगें |
भक्ति पथ: आस्था और भक्ति का अनूठा सफर
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