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राजस्थान का इतिहास
  • परमारोकामूलराज्यआबू और उसके निकटवर्ती प्रदेश थे| जिस कारण आबू का पुराना किला परमार शासकों द्वारा बनवाया गया|
  • चंद्रावती उनकी राजधानी थी| यहां से उनकीविविधशाखायेंमारवाड़,सिंध, गुजरात का कुछ भागतथा मालवा में फैली, जहां उनके पटक राज्य स्थापित हुए|

 

  • मेवाड़ के महा पराक्रमी महाराणा कुंभा ने इसी प्राचीन दुर्ग के भग्नावशेषोंपर एक नयेदुर्ग  का निर्माण करवाया जो अचलगढ़ के नाम सेविख्यातहुआ|
  • कर्नल टॉड ने आबू पर्वत को हिंदू ओलम्पस ( देव पर्वत )कहां है, क्योंकि इस पर्वत माला पर अनेक देव मंदिर विद्वान हैं|
  • आबू पर्वत की अधिष्ठाता देव अचलेश्वर महादेवहीहैं| इस मंदिर में शिवलिंग ने होकर केवल एक गड्डा है, जिसे ब्रह्म खंड कहा जाता है|
  • आक्रांता महमूदबेगड़ाद्वारा शिवप्रिया पार्वती तथा उनके वाहन नंदी की प्रतिमा को खंडित किया गया,जो आज भी खंडित अवस्था में विद्यमान हैं|
  • कहा जाता है कि महमूद बेगड़ा जब अचलेश्वर के नंदी सहित अन्य देव प्रतिमाओं को खंडित कर लौट रहा था तब मधुमक्खियों का एक बड़ा दल आक्रमणकारियों पर टूट पड़ा| जिस कारण यहस्थान आज भीभंवराथल केनामसेप्रसिद्ध है|
  • अचलेश्वर महादेव के पास ही एक मंदाकिनी कुंड है|
  • मंदाकिनी कुंड से पूर्व की तरफ परमार राज्य के संस्थापक आदि परमार की पाषाण प्रतिमा स्थापित है, जिसमें वह अपने तीरसेभैसेकारूप धारण किए राक्षसों का वध कर रहा है, जो रात्रि के समय अग्निकुंड का पवित्र जल पी जाया करते थे|
  • कर्नल टॉड ने इस पाषाणप्रतिमा को मूर्ति कला का अद्भुत नमूना बताया है|
  • कर्नल टॉड के अनुसार –“जैतने अपनी राजभक्ति अपनी पुत्री ‘ बुद्धि मती ऐच्छीनी’सहितदिल्ली के अंतिम राजपूत सम्राट पृथ्वीराज को समर्पित करदीथी|

 

अन्य दर्शनीय स्थल :-

 

  • यहां पार्श्वनाथ का जैन मंदिर है,जिसे मांडू के श्रेष्ठीने बनवाया था|कर्नल टॉड ने इस मंदिर के कलात्मक स्तंभों को अजमेर केप्राचीन मंदिर के स्तंभों सेसादृश्य बताया है|
  • राणा कुंभा व उसके पुत्रउदाकी मूर्तियां – सावन भादवा तथाभंवराथलस्थानदर्शनीय|
  • सिरोही के महाराव मानसिंह का स्मारक यहां के प्रमुख ऐतिहासिकस्थानहै|
  • दुर्ग के भीतर कुंभा के राज प्रसाद, उनकी ओखा रानी का महल, अनाज के कोठे  ( अन्न भंडार ), सैनिकों के आवासगृह, पानी के विशाल टैंक , परमारो द्वारा निर्मित खतरे की सूचना देने वाली बुर्जआदि के भग्नावशेषविधवानहै|
  • अरावली की सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर यही स्थित है|
  • अन्य दर्शनीय स्थल मे अबुदा देवी का मंदिर, सनसेट पॉइंट, नक्की झील – यहां टोड रॉक वननरॉक स्थित हैं|
  • रसिया बालम मंदिर:-  विश्व प्रसिद्ध दिलवाड़ा जैन मंदिर के पीछे पर्वत की तलहटी में यह मंदिर स्थित है| इस मंदिर में दो पाषाण मूर्तियां स्थापित हैं|एक मूर्ति युवक की है जो हाथ में विष का प्याला लियेहै| इसके सामने नजदीक ही दूसरी मूर्ति युवतीकी है|

 

 

अन्य महत्वपूर्ण बिंदु :-

  • माउंट आबू सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान है|
  • माउंट आबू को राजस्थान का शिमला कहा जाता है|
  • माउंट आबू अभ्यारण जंगली मुर्गों के लिए प्रसिद्ध है|
  • सिरोही क्षेत्र राजपूताना गवर्नर जनरल के एजेंट (एजीजी) का मुख्यालयथा|
  • घग्घर नदी के मुहाने पर बसा भटनेर दुर्ग का निर्माण भाटी राजा भूपत ने कराया|
  • भटनेर का दुर्ग राजस्थान राज्य के उत्तरी प्रवेश द्वार का रक्षककहाजाता है क्योंकि मध्य एशिया से होने वाले आक्रमण इसी मार्ग से होते थे |
  • महमूद गजनबी ने 1001 ई. में भटनेर के दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया |
  • 1398 ई. में भटनेर के दुर्ग पर तैमूर ने आक्रमण कर दिया |जिससे भाटी राजा दुलीचंद को परास्त करदुर्गअपने कब्जे में ले लिया |
  • तैमूर के भयानक आक्रमण से भयभीत होकर हिंदू स्त्रियों के साथ-साथ मुसलमान स्त्रियों ने भी जौहर किया |
  • बीकानेर के चौथे शासक राव जैत सिंह ने 1527 ई. मेंसादा चायल को पराजित कर पहली बारभटनेर के दुर्ग पर राठौड़ों का आधिपत्य हुआ |
  • सन 1534 ई. में हुमायूं के भाई कामरान ने भटनेर के दुर्गपर पुन: अधिकार कर लिया |
  • बीकानेर के महाराजा सूरत सिंह ने 1805 ई. में भटनेर के दुर्ग को वापस लेने के लिए आक्रमण कर दिया! इससे 5 महीने तक राठौड़ों के जाब्ते ने दुर्ग को घेरे रखा और इस प्राचीन दुर्गपर राठौर ने पुन: विजय प्राप्त कर ली |
  • महाराजा सूरत सिंह द्वारा मंगलवार के दिन भटनेर केदुर्ग पर अपना अधिकार होने के कारण इसका नाम हनुमानगढ़ रख दिया गया |
  • और इस उपलक्ष में किले के अंदर हनुमान जी के मंदिर का निर्माण भी कराया गया |

 

दर्शनीय स्थल:-

सिला माता का मंदिर :-इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पर सभी धर्मों के लोग चाहेहिंदू-मुस्लिम या सिखपूजा करते हैं!इसे मुस्लिम सिला पीर भी कहते हैं |

 

भद्रकाली मंदिर :- यह मंदिर हनुमानगढ़ से 7 किलोमीटर दूर घग्घरनदी के किनारे स्थित है |

 

गोगामेडी :- यह फिरोज शाह द्वारा निर्मित मस्जिद नुमा मंदिर है | यह लोक देवता गोगाजी का तीर्थ स्थल है | जिन्हें सांपों का देवता भी कहते हैं |

 

कालीबंगा :- ( काली चूड़ियां ) हड़प्पा कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए है |

 

संगरिया :- स्वामी केशवानंद जी के स्मारक संग्रहालय स्थित है |

 

अन्य महत्वपूर्ण बिंदु :-

  • भटनेर दुर्ग के संबंध में तैमूर लंग केतुजुक-ए- तैमूरी मेलिखा है कि “सामरिक दृष्टि से इतना मजबूत और सुरक्षित किला मैंने भारत में कहीं नहीं देखा?”
  • पुरातात्विक स्थल रंग महल हनुमानगढ़ स्थित है|
  • हनुमानगढ़ जिले में सूर्य की किरणें अधिकतम तिरछी पडती हैं|
  • भटनेर का किला एक धान्वन दुर्ग है|
    • गागरोन दुर्ग का निर्माण डोड (परमार) राजपूतों द्वारा करवाया गया | इन्हीं के नाम पर यह डोडगढ़ या धूलरगढ़ कहलाता है |

 

 

    •  आहू और कालीसिंध नदियों का संगम स्थल जो स्थानीय भाषा में सामेल कहलाता है- के निकट मुकंदरा की पहाड़ी पर स्थित है |
    •  चौहान कुल कल्पद्रुम के अनुसार खींची राजवंश के संस्थापक देवनसिंह ने अपने बहनोई बीजलदेव  डोड़ शासक को मारकर इस दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया और इसका नाम गागरोन रखा |
    •  सन 1303 ई.में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने गागरोन पर आक्रमण कर दिया उस समय राजा जैतसिंह का शासन काल था |
    •  राजा जैतसिंह ने अलाउद्दीन खिलजी का सफलता पूर्वक प्रतिरोध किया तथा राजा जैत सिंह की विजय हुई|
    •  राजा जैतसिंह के शासनकाल में  खुरासान से प्रसिद्ध सूफी संत हमीदुद्दीन चिश्ती गागरोन आये | उनकी दरगाह मीठे साहब के नाम से प्रसिद्ध है|
    •  राजा जैत सिंह की तीसरी पीढ़ी में भक्ति परायण नरेश पीपा राम का हुये | पीपा जी ने अपना राज्यवैभव त्याग कर, संत रामानंद के शिष्य बन गए |
    •  इनकी छतरी आहू व कालीसिंध नदियों के संगम के समीप स्थित है, जिसे संत पीपा की छतरी कहते हैं |

 

इतिहास में गागरोन दुर्ग के दो साके प्रमुख हैं :-

 पहला साका –  गागरोन के सबसे अधिक प्रसिद्ध कथा पराक्रमी शासक राजा भोज के पुत्र अचलदास हुए, जिन के शासनकाल में पहला साका हुआ | सन 1423 में मांडू के सुल्तान अलपखां गोरी ( उर्फ होशंग शाह) ने एक विशाल सेना के साथ गागरोन पर आक्रमण कर दिया तथा किले को घेर लिया गया | जिसमें गागरोन के शासक अचलदास ने अपने बंधु – बांधवो के साथ योद्धाओं को एकत्रित कर मांडू के सुल्तान का डटकर मुकाबला किया | इस भीषण संग्राम में अचलदास  तथा उसके बंधु -बांधव वीरगति को प्राप्त हुए | जिसके कारण उनकी रानियों और दुर्ग की ललनाओ ने अपने को जौहर की ज्वाला में भस्म में कर दिया | इसके पश्चात अलपखां गोरी ने गागरोन के दुर्ग को अपने बड़े शहजादे गजनी खा को सौंप दिया |

 इधर खींची वंशज पाल्हणसी अपने खोए हुए पैतृक राज्य को पाने के लिए सही अफसर की प्रतीक्षा कर रहा था | उसने अपने मामा राणा कुंभा की सैन्य सहायता से गागरोन पर पुन: विजय प्राप्त कर ली और अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया | इसे ही इतिहास में गागरोन का प्रथम साका कहा गया है |

 दूसरा साका :-  1444 ईस्वी में महमूद खिलजी ने गागरोन पर आक्रमण कर दिया | उस समय गागरोन के शासक पालहणसी थे पालहणसी ने मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा एवं अपने मामा राणा कुंभा से सैनिक सहायता की मांग की, जिस पर उनके मामा राणा कुंभा ने धीरा सेनापति के नेतृत्व में एक सैन्य दल उसकी सहायता के लिए भेज दिया | इस भीषण युद्ध में सातवें दिन सेनापति धीरा अपने योद्धाओं के सहित लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया | जिससे पालहणसी की हिम्मत टूट गई और वह रात के अंधेरे में अपने विश्वस्त सैनिकों के साथ दुर्ग से पलायन कर गया | जंगल में भटकते हुए, उनका पाला बर्बर भीलों के गिरोह से पड़ गया | इन बर्बर भीलो ने पाल्हणसी सहित समस्त योद्धाओं को मौत के घाट उतार दिया | इधर गागरोन के दुर्ग में बचे हुए योद्धाओं ने अपना केसरिया बाना पहन कर सिंह की भांति युद्ध में टूट पड़े | तथा वीरांगनाओं ने दुर्ग के अंदर जोहर किया | यह घटना इतिहास में गागरोन के दूसरे साके के रूप में प्रसिद्ध  हुई |

 दर्शनीय स्थल :-

 

    • गागरोन दुर्ग की विशेषता यह है कि इस दुर्ग का निर्माण सीधे चट्टान पर किया गया है बल्कि इसमें नींव नहीं है | इस किले के तीन परकोटे हैं | किले के अंदर दो प्रवेश द्वार हैं जिनमें एक पहाड़ी की तरफ खुलता है तथा दूसरा द्वार नदी की तरफ |
    •  गागरोन दुर्ग से कुछ दूरी पर झालरापाटन नामक जगह है जिसमें सात सहेलियों का मंदिर स्थित है | इस मंदिर को कर्नल टॉड ने चारभुजा मंदिर भी कहा है |
    •  भवानी नाट्यशाला- महाराजा भवानी सिंह द्वारा निर्मित यह नाट्यशाला पारसी ओपेरा शैली की है |
    •  नवलखा किला – इस किले का निर्माण झाला राजा पृथ्वी सिंह ने करवाया |
    •  झालरापाटन में शीतलेश्वर  महादेव का मंदिर भी दर्शनीय है | झालरापाटन को घंटियों का शहर भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर मंदिरों में हजारों घंटियां लटकी हुई है |

 

अन्य महत्वपूर्ण बिंदु :-

 

    •  झालावाड़ राजस्थान का सर्वाधिक आर्द जिला है |
    •  राजस्थान का तिथि युक्त देवालय शीतलेश्वर महादेव मंदिर है जो की सबसे प्राचीन है |
    •  संत मीठे साहब की दरगाह गागरोन में स्थित है |
    •  विद्वानों का अनुमान है कि पृथ्वीराज ने अपना प्रसिद्ध ग्रंथ ‘ वेलिक्रिसन रुक्मणी री’ गागरोन में रहकर लिखा |
    •  संत पीपा का मठ द्वारिका में स्थित है |

 

 

 

 

    • पूर्व में हाडोती का संपूर्ण क्षेत्र बूंदी राज्य के अंतर्गत आता था| बूंदी का यह नाम, वहाँ के शासक बूंदा मीणा के नाम पर पड़ा|
    • बम्बावदे के हाडा शासक देवी सिंह ( राव देवा ) नें बुंन्दू घाटी के अधिपति जैता मीणा को पराजित कर बूंदी में अपनी राजधानी स्थापित की|
    • हाडा राजवंश का लंबे समय तक बूंदी तथा उसके आसपास के क्षेत्र पर अधिकार होने के कारण, वहां का क्षेत्र हाडोती के नाम से विख्यात हुआ|
    • डिंगल कवि और इतिहासकार सूर्यमल्ल मिश्रण द्वारा लिखित वंश भास्कर में बूंदी क्षेत्र को हाड़ोती कहा गया है|
    • राव देवा के वंशज राव बरसिंह ने मेवाड, मालवा और गुजरात की ओर से संभावित आक्रमणो से सुरक्षा हेतु बूंदी के पर्वत शिखर पर एक विशाल दुर्ग का निर्माण करवाया जो तारागढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ|
    • यह किला पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित होने के कारण तारे के समान नजर आता है, इस कारण इस किले का नाम तारागढ़ पड़ा|
    • मेवाड़ के महाराणा लाखा भी ज़ब अथक प्रयासों के बावजूद भी बूंदी पर अधिकार नहीं कर सके तो उन्होंने मिट्टी का नकली दूर्ग बनवा कर उसे ध्वस्त कर अपने मन की आग बुझाई|
    • महमूद खिलजी नें बूंदी पर 3 बार आक्रमण किया तथा बूंदी पर अपना अधिकार कर लिया|
    • महाराणा कुंभा ने मोहम्मद खिलजी से पुन बूंदी के किले को अपने अधिपत्य में ले लिया |
    • अकबर के शासन काल में बूँदी के राव सुर्जन हाडा ने रणथंबोर दुर्ग मुगलों को सौफकर उनकी अधीनता स्वीकार कर ली| तब से बूंदी मेंवाड से मुक्त हो गया|
    • जहांगीर के शासनकाल में शाहजहां ने अपने पिता के विरुद्ध झंडा  खड़ा किया तो बूंदी के रतन सिंह हाडा ने उसे शरण दी|
    • मुगल बादशाह शाहजहां ने बूंदी से कोटा को पृथक किया तथा नई कोटा रियासत बनाई |
    • मुगल बादशाह फर्रूखसियर ने बूंदी राज्य का नाम फर्रुखाबाद रखा था |
    • राजस्थान में मराठों का सर्वप्रथम प्रवेश बूंदी में हुआ, वहां के कछवाही रानी ने अपने पुत्र उम्मेद सिंह के पक्ष में होल्कर तथा राणो जी को आमंत्रित किया |

 

 दर्शनीय स्थल:-

 

    • बूंदी के किले में छत्र महल, अनिरुद्ध महल, रतन महल, बादल महल और फूल महल स्थापत्य कला के अतीव उत्कृष्ट उदाहरण है| बूंदी के इन राज महलों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनके भीतर अनेक दुर्लभ एवं जीवंत भित्ति चित्रों के रूप में कला का एक अनमोल खजाना विद्वान है|
    • 84 खंभों की छतरी, शिकार बुर्ज, फूल सागर, जैत सागर और नवल सागर सरोवर बूंदी की अनुपम झलक प्रस्तुत करते हैं|
    • इसके अलावा जीव रखा महल, दीवाने आम, सिलहखाना, नौबत खाना तथा दुदामहल आदि उल्लेखनीय हैं|
    • बीजासण माता का मंदिर बूंदी में विश्व प्रसिद्ध मंदिर है|
    • केशव राय जी के प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण बूंदी के राजा शत्रुसाल ने करवाया था|
    • तेजाजी महाराज का पवित्र तीर्थ स्थल दुगारी बूंदी में स्थित है|
    • राज्य का प्रथम सीमेंट कारखाना लाखेरी बूंदी जिले में स्थित है|
    • महाराव उम्मेद सिंह के शासन काल में निर्मित चित्रशाला ( रंग विलास  ) बूंदी चित्रशाला का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है|

 

अन्य महत्वपूर्ण बिंदु :-

 

    • कर्नल टॉड ने बूंदी के राज महलों को सर्वश्रेष्ठ कहा है|
    • बूंदी को छोटी काशी तथा बावडियों का शहर कहा जाता है|
    • बूंदी में स्थित क्षारबाग दिवंगत राजाओं की समाधि स्थल है|

 

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