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कोई नाम नहीं फिर भी

नामों में बंधे बंधन, बहुत स्वीकृति से स्वीकार हो जाते हैँ.. कुछ फिर भी बेनाम रह जाते हैँ, उनका कभी कोई, कभी कोई नाम हो जाता हैपरिस्थिति के अनुसार|

समाज के बनाये हैँ ये कुछ नाम रिश्तों के नाम.. बहुत पास और बहुत दूर के भी यानि परिवार से लेकर सगे सम्बन्धियों के कई नाम बुआ, चाचा, ताऊ, ताई, चाची, भाभी, आदि|

बड़े हक से साथ चल सकते हैँ.. और बेनाम जो होते हैँ देखते ही रह जाते हैँ क्योंकि उनके पास सर्टिफिकेट नहीं होता| यानि कड़वे सच के रूप में लिखें तो अपने होने का सबूत नहीं होता|

इस सर्टिफिकेट की ताकत बहुत बड़ी होती है.. बाकि सब किताबी बातें होती हैँ.. हकीकत से अलगबहुत अलग| ये सर्टिफिकेट बहुत कीमती होता है बिल्कुल जैसे अटेस्टेड डॉक्यूमेंट

जिसके होने से ही हम अपने अमुख अमुख होने का सबूत पेश कर सकते हैँ इसलिये मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है क्योंकि जो समाज की विपरीत धारा में चलने का प्रयास करता है उसके पास खुद के होने का भी कोई सबूत नहीं रह जाता|

ऐसे नाम बोलने में कितने भी खूबसूरत हों लेकिन उनमें और अटेस्टेड नामों में वही अंतर होता है जो हकीकत के फूलों और कागज़ के फूलों में होता है|

अयं निज़ः परोवेति

यंनिज़ःपरोवेति, गणनालघुचेतसाम|

उदारचेरितेनाम तोवसुधैवकुटुंबकम ||

 

ये शब्दहैँ जो समझ पाये तो मनुष्य होना सार्थक हो जायेगा

नहीं तो है ना बहुत कुछ जो हमें संकुचित बनाकर रखता है| हम सोचते हैँ, कि हम बड़ी किताबें पढ़कर बड़े बन जायेंगे पर इससे बड़ी कोई भूल नहीं| जिस तरह खाने की फोटो क़ो देख लेने से भूखशांत नहीं हो सकती उसी तरह शिक्षाक़ो धारण करना और किताबें पढ़ना दोनों अलग अलग बातें हैँ| पढ़ लेने का मतलब नहीं किआपके विचार शिक्षित हो गए|कभी कभी आप बड़ी डिग्रियां धारण करने वाले बड़े अज्ञानी बनकर रह जाते हैँ|

अगर हम इस वसुधाक़ो एक कुटुंब नहीं मान सकते तो क्या अर्थ है हमारे ज्ञान का जिसने अहम औरअहमियत के सिवाय कुछ नहीं सीखाया|

अपनों के दर्द क़ो महसूस करते है हम, लेकिन जो अनजान हैँउनके दर्द में अगर हम दर्द ना महसूस करें तो क्या

 

करुणा, प्रेम, वात्सल्य, धैर्य सीखेंये सार है..

मानिये ये प्रश्न पत्र हैँ, जो देकर ईश्वर हमें पास या फेल करते हैँ|’

अंधविश्वास को बढ़ावा देता कौन ?

पुराने समय में लोग अशिक्षित थे इसलिए सब कह देते थे कि इन अनपढ़ लोगों की वजह से ही अंधविश्वास फैलाने वालों की दुकानें चलती हैं | यह पाखंडीलोग भोली -भाली जनता को मूर्ख बनाकर उनका शोषण करते हैं |

लेकिन वर्तमान समय की बात करें तो जितना अंधविश्वास के कटघरे में,जितनेशिक्षित व्यक्ति खड़े हैं उतने अशिक्षित नहीं | अगर सीधे शब्दों में कहें तो आज बड़ी- बड़ी डिग्रीया धारी व्यक्ति की वजह से ही इन पाखंडियोंऔर अंधविश्वासियोकी दुकानें चल रही हैं | समझ नहीं आता है कि इतनी बड़ी-बड़ी डिग्रियां प्राप्त कर के अच्छे-अच्छे पदों की शोभा बढ़ा रहे हैं फिर भी येसभ्यलोग इनकी चपेट में कैसे आ जाते हैं | आज अंधविश्वास बढ़ने का एक कारण यह भी है कि मनुष्य कम समय में ज्यादा लाभ प्राप्त करना चाहता है अर्थात बिना मेहनत कियेफल प्राप्त हो जाए | अब अनपढ़ों के साथ-साथ पढ़े लिखे लोग भी अपनी छोटी-छोटी स्वार्थ पूर्ति के लिए अंधविश्वासों का सहारा ले रहे हैं | यह लोग इतनी अपनी महत्वाकांक्षाओं में डूब गयेहै कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि यह बड़ी-बड़ी डिग्रियां उन्हेंकोई दहेज में नहीं मिली है बल्कि इनके लिए रात दिन कठिन परिश्रम करकेअर्जितकी गई हैं | वर्तमान में लोगों ने शिक्षा के वास्तविक स्वरूप को भी भुला दिया है |

शिक्षित और अनपढ़ में जो फर्क है-वहहै कि ज्ञान संपन्न होना | लेकिन वर्तमान की हालत को देखते हुए ऐसा लगता है कि शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी व्यक्ति विवेकशून्य ही कार्य कर रहा है | वह भूल चुका है कि शिक्षित होने का अभिप्राय है ज्ञान संपन्न अर्थात अपने विवेक के द्वारा सत्य असत्य को जानना है |

अगर येशिक्षित लोगों ही अक्ल से अंधे बन  जाएंगे तो समाज में दिन-प्रतिदिन अंधविश्वास फैलाने वालों की बाढ़ आ जाएगी | जिसका परिणाम यह होगा कि मनुष्य अकर्मण्य बन जाएगाजो कि विकासशील समाजतथाराष्ट्र के लिए दुर्भाग्य का विषय होगा|

नर हो न निराश करो मन क़ो

मैथिली शरण गुप्त की उक्त पंक्तियाँ सदियों तक उत्साह भरती ही रहेंगी| शब्दों की ऊर्जा, भोजन की ऊर्जा से कम नहीं होती बल्कि शब्दों में इतनी ताकत होती है कि आप बड़ी से बड़ी कठिनाइयों क़ो पार कर लेते हैँ, अंतर्मन की ऊर्जा से|

युग कोई भी हो योद्धा क़ो समर में लड़ना ही होता हैराहें कभी आसान नहीं होंगी| हमेशा मुश्किलें ही होंगी.. बाधाएँ तो आएँगी ही, निश्चित है| जिस तरह येनिश्चित है, उसी तरह अपनी जीत क़ो भी निश्चित बनाओ|

 

नर हो न निराश करो मन क़ो

मत सोचो कोई साथ देगा, तुम अपना साथ मत छोड़ो..

कितनी भी विपरीत हो धारा, तुम बढ़ते रहो, आगे बढ़ते रहो..

तुम धर्म अपना मत छोड़ो, तुम अपना कर्म मत छोड़ो

चुनौतियों क़ो स्वीकार करो, मुश्किलों क़ो अंगीकार करो

 

नर हो न निराश करो मन क़ो

जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता...

इन शब्दों में कितनी ऊर्जा है, एक बार बोल कर देखिये.. हम में से हर भारतवासी इन शब्दों में अपना गौरव महसूस करता है क्योंकि देश हमारा है, आज़ादी हमारी है..
बहुत बहुत शुभकामनायें आप सभी क़ो

26 जनवरी 1950 के इस वर्ष की सुबह हमारे भीतर कई संकल्पों क़ो जन्म दें |
ये सुबह हमें देश की मिट्टी की खुश्बू का एहसास करवाए |

ये सुबह कुछ वादे खुद से, अपने देश के लिए कराये कि हम… मैं
नहीं हम की भावना से भर जाएँ |

ये सुबह देश के वीरों की याद ही न दिलाये, बल्कि वैसा देश प्रेम से भरा ह्रदय हम सबका हो जाये |
ये सुबह हमारे महापुरुषों क़ो ऐसी श्रद्धांजलि दे कि हम खुद में उनके विचारों क़ो, उनकी हिम्मत क़ो उनके दृढ निश्चय क़ो जीवंत बना दें सदैव के लिए |
ये कुछ पल, कोई दिन, किसी तारीख के भाव न हों.. बल्कि ये पूरे जीवन के लिए एक वादा बन जाएं
खुद क़ो एक नाम नहीं देशवासी देखें तभी कर्तव्य और अधिकार सभी पूरे कर पाएंगे |

नई गूँज के समस्त सम्पादक मण्डल की ओर से आप सभी क़ो बहुत बहुत शुभकामनायें |

जय हिन्द

अच्छी बात सच्ची बात

जीवन में सबसे अनमोल है आपकी सोच | इसी सोच से यानि अपने अंदर चलने वाले विचारों से रंगी दुनिया ही दिखाई देती है आपको…

आपने मान लिया कि कठिन है तो कठिन ही हो जायेगा और आपने मान लिया कि आसान है तो आसान ही हो जायेगा |

यानि ये…

कि जैसा आप चाहो वही आप पा सकते हो पर शर्त ये है कि सोच में भी वही होना चाहिए |

ऐसा नहीं होता कि जीतने की इच्छा है और आप हार के बारे में सोच रहें हो|

तो कैसे होगा |

अपने विचारों क़ो गौर कीजियेगा

आपने सुना होगा जिस रंग का चश्मा पहनते हैँ सब कुछ उसी रंग का दिखाई देने लगता है |

तो पारदर्शी बना दीजिये सोच क़ो

कोई रंग ना हो जिस पर अपने रंग के सिवाय |

फिर देखिए दुनिया कैसी नज़र आती है..

दूसरों को नहीं, स्वयं को बदलें |

आज संसार में प्रत्येक व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति में कमी तथा उसके द्वारा किये गये कार्यों का खंडन करता रहता है और उसे हर समय नसीहत देता है कि आप गलत हैं |

लेकिन हम कभी भी स्वयं अपने गिरेबान में झांक कर नहीं देखते हैं और ना ही अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करते हैं |

लेकिन हम कभी भी स्वयं अपने गिरेबान में झांक कर नहीं देखते हैं और ना ही अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करते हैं | लेकिन यह कितने आश्चर्य की बात है कि हम संसार को तो बदलना चाहते हैं लेकिन स्वयं को नहीं | इससे प्रतीत होता है कि हम यही सोचते हैं कि हम तो दूध के धुले हैं लेकिन सामने वाले हैं बहुत दाग है |

शास्त्रों में कहा गया है-“ कि जब तक हम स्वयं में सुधार नहीं करेंगे, तब तक हम किसी को बदल भी नहीं सकते |”

अगर हम स्वयं वह कार्य करते हैं और अन्यों में दोष देखते हैं तो हम संसार में हंसी तथा अपयश के पात्र बनेंगे और लोग हमसे कहेंगे कि –

“श्रीमान स्वयं बैंगन खाये, औरों को परहेज बताएं |”

अतः मनुष्य को चाहिए कि वह सत्य निष्ठा तथा सही आचरण करें और अन्य लोगों को करने के लिए अवगत करें | जिससे हम कह सकेंगे – “कि हम बदलेंगे तो जग बदलेगा |”

हमारा भारत

क्या आप जानते हैँ, 26 जनवरी क़ो भारतीय संविधान लागू हुआ ही साथ ही इतिहास के पन्नों पर कई ऐसी ऐतिहासिक घटनाएं हैँ जो 26 जनवरी क़ो घटित हुईं –

26 जनवरी 1930 क़ो लाहौर की रावी नदी के तट पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत में पूर्ण स्वराज्य की घोषणा की थी और हमारे देशवासियों ने उस दिन क़ो स्वराज्य दिवस के रूप में मनाया था ! इसी कारण से संविधान लागू करने के लिए 26 जनवरी का दिन ही चुना गया

इतिहास के पन्नों से –

26 जनवरी 1957 क़ो जम्मू और कश्मीर की संवैधनिक व्यवस्था क़ो लागू किया गया !

26 जनवरी 1969 क़ो मद्रास राज्य का नाम मद्रास के स्थान पर तमिलनाडु  किया गया !

अतीत के पन्नों से –

26 जनवरी 1164-

राजा बीसलदेव ने दिल्ली पर विजय प्राप्त की !

 26 जनवरी 1299 –

अल्लाउद्दीनखिलजी ने दिल्ली के किले की नाकेबंदी करने में सफलता पाई !

 26 जनवरी 1530-

मुग़ल सम्राट बाबर की मृत्यु होने के कारण शोक दिवस के रूप में मनाया गया !

 26 जनवरी 1556-

संयोग वश इसी तारीख पर बाबर के पुत्र हुमायूं की मृत्यु हुईं !

 26 जनवरी 1539 क़ोशेरशाह सूरी ने हुमायूं पर विजय प्राप्त की ! कोलकाता से पेशावर तक इन्हीं बादशाह शेरशाह के नाम पर सड़क बनाई गयी थी !

 26 जनवरी 1554-

बादशाह अकबर के पुत्र सलीम का जन्म हुआ !

 26 जनवरी 1720-

बादशाह नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण के लिए इसी दिन क़ो चुना !

 26 जनवरी 1792 –

मुग़ल सुल्तानटीपू ने युद्ध के दौरान अंग्रेजों क़ो परास्त किया !

 26 जनवरी 1835-

अंग्रेजों ने काबुल में पहली बार दस्तक दी !

 26 जनवरी 1853-

इस दिन भारत में यात्री रेल का प्रारम्भ किया गया !

 26 जनवरी 1861-

कोलकाता और मुंबई के बीच पहली रेल चलाई गयी !

 26 जनवरी क़ोजण गण मन अधिनायक जय हे गीत क़ो राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ !

आज़ादभारत

26 जनवरी 1993-

देश में निजी बैंक खोलने की शुरुआत की गयी !

सनातन संस्कृति में नव वर्ष का महत्व
sanatan-sanskriti

आओ चिन्तन करें

सत्य को ग्रहण करें

 

मनुष्य आधुनिकता की दौड़ में अपनी परम्पराओ से कोसों दूर दिखाई दे रहा है, जो मनुष्य अपनी जड़ो से दूर अर्थात अपनी मूल संस्कृति से भटक जाता है, वह अपना तो नुकसान करता ही है तथा अपनी संस्कृति पर भी कलंक लगा देता है आज चारों ओर यही दिखाई दे रहा है, लोग तारीख बदलने मात्र को ही नव वर्ष मानने लगे हैँ

नया केवल एक दिन नहीं होता है, जब तक प्राणी जगत में ख़ुशी और नयी अनुभूति ना हों वह केवल और केवल तारीख बदलना ही है

पाश्चात्य संस्कृति की ओर भागते हुए युवाओं ने केवल मौज मस्ती और मांस मदिरा के सेवन को ही नव वर्ष कहना शुरू कर दिया, जिसमें नयी चीज कोई अनुभूति नहीं होती चारों तरफ कड़कड़ाती ठण्ड, पतझड़,पेड़, पौधे, ना ही चाँद तारों की दिशा

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह  दिनकर ने अपने   शब्दों  में दर्द  बयां किया है

 

चंद मास अभी इंतज़ार करो,*

निज मन में तनिक विचार करो,

नये साल नया कुछ हो तो सही,

क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही।

 

लेकिन वास्तविक नव वर्ष की बातें करें तो ज़ब प्राणी जगत में ख़ुशी की लहर आती है वह झूम उठता है , चारों तरफ किसान पकी फसल को देखकर ख़ुश होते हैं , पेड़ पौधों में नयी नयी पत्तियों का आगमन तथा  फूलों से लदे उद्यान दिखाई देते हैं , जो उल्लास, उमंग और ख़ुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुघन्दी से भरा होता है

वेदो के अनुसार चैत्र प्रतिपदा को सृष्टि की उत्पत्ति का दिन कहा जाता है तथा इसी दिन युधिष्टिर का राज्याभिषेक हुआ जिसके कारण, चैत्र प्रतिपदा के महत्व में और चार चाँद लग गए

भारतीय नववर्ष कैसे मनाएँ

 

प्राचीन काल से ही नववर्ष को भारत के अलगअलग प्रांतों में स्थानीय परंपरा संस्कृति के अनुसार मनाया जाता रहा है। इस दिन को हर्षोउल्लास के साथ मनाये जाने की परंपरा प्राचीन काल से रही है। हम परस्पर एक दुसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ दे सकते है। अपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को नववर्ष के शुभ संदेश भेज कर भी इस उत्सव को मना सकते है। इस मांगलिक अवसर पर अपनेअपने घरों पर भगवा पताका फहरा कर तथा अपने घरों के द्वार पर आम के पत्तों की वंदनवार लगाकर घरों एवं धार्मिक स्थलों की सफाई कर रंगोली तथा फूलों से सजाकर इस अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्य के आनंद की अनुभूति ले सकते है।

 

भारत के महान सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया था। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है। प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन भी यही माना गया है। शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात नवरात्र का पहला दिन यही है। तो सिखो के द्वितीय गुरू अंगद देव का जन्म चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का है। जानकारी के अनुसार स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की एवं

कृणवंतो विश्वमआर्यम

का संदेश दिया

 

भारतीय संस्कृति में लोग नव वर्ष के दिन पूजा पाठ, हवन यज्ञ, करके अपने जीवन की शुरुवात करते हैँ, लोग बड़ों के पैर छूते हैँ तथा उनसे आशीर्वाद लेते हैँ

नव वर्ष के मांगलिक अवसर पर लोग अपने अपने घरों की छतो पर ध्वजा फहरा कर तथा अपने घरों के दरवाजे पर आम तथा अशोक के पत्ते बना कर टांगते हैँ कई जगह तो रंगोली बनाकर नव वर्ष का स्वागत किया जाता है

किसी कवि ने सही कहा है

 

उठो खुद को पहचानो,यूँ कब तक सोते रहोगे तुम।

चिन्ह गुलामी के कंधों पर,कब तक ढोते रहोगे तुम।

अपनी समृद्ध परंपराओं का,आओ मिल कर मान बढ़ाएंगे।

आर्यवृत के वासी हैं हम,अब अपना नववर्ष मनाएंगे।।

ब्रजेश कुमार